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Wednesday, 15 July 2015

हळोतियो

खेतां करूं हळोतियो
बीजूं मूंग ग्वार
भीगो मरूधर आज म्हारो
मुळ्क रह्या नर नार

धोरा धरती उखल गिया
मोतीयों री आस में
बाजर बोयो खेत में
सिटो चढ्यो आकाश में

पाणी तरसते थार में
इन्द्रदेव मेहर करी
चांदी जेड़ी इण धरती ने
कर दीनी है हरी हरी

ढोर चरे अड़ाव में
मिनख खपे खेत में
सगळा ने निहाल किया
निवण करूं इण रेत ने

काचर मतीरा होवसी
तिल आळे तेड़े में
टाबर टींगर जीमसी
बैठा बैठा खेड़े में

किण विद मैं बखाण करूं
आखर म्हारा कम पड़े
शीश नवाऊं ईं धरती नें
जिणसूं धान पेट पडे

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