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Sunday 8 October 2017

*"परिवार"*

परिवार अब कहाँ, परिवार तो कब के मर गए।
आज जो है, वह उसका केवल टुकड़ा भर रह गए ।

पहले होता था दादा का, बेटों पोतों सहित
भरा पूरा परिवार,

एक ही छत के नीचे ।
एक ही चूल्हे पर ,
पलता था उनके मध्य ,
अगाध स्नेह और प्यार।

अब तो रिश्तों के आईने ,
तड़क कर हो गए हैं कच्चे,
केवल मैं और मेरे बच्चे।
माँ बाप भी नहीं रहे
परिवार का हिस्सा,
तो समझिये खत्म ही हो गया किस्सा।

होगा भी क्यों नहीं,
माँ बाप भी आर्थिक चकाचोंध में,
बेटों को घर से दूर
ठूंस देते हैं किसी होस्टल में,
पढ़ने के बहाने।
वंचित कर देते हैं प्रेम से
जाने अनजाने।

आज की शिक्षा
हुनर तो सिखाती है ।
पर संस्कार कहाँ दे पाती है।

पढ़ लिख कर बेटा डॉलर की
चकाचोंध में,
आस्ट्रेलिया, यूरोप या अमेरिका
बस जाता है।
बाप को कंधा देने भी कहाँ पहुंच पाता है।

बाकी बस जाते हैं बंगलोर ,
हैदराबाद, मुम्बई,
नोएडा या गुड़गांव में।
फिर लौट कर नहीं आते
माँ बाप की छांव में।

पिछले वर्ष का है किस्सा ,
ऐसा ही एक बेटा ,देकर घिस्सा
पुस्तैनी घर बेचकर ,
माँ के विश्वास को तोड़ गया ।
उसको यतीमों की तरह ,
दिल्ली के एयर पोर्ट पर छोड़ गया।

अभी अभी एक नालायक ने
माँ से बात नहीं की ,पूरे एक साल।
आया तो देखा माँ का आठ माह पुराना कंकाल ।
माँ से मिलने का तो केवल एक बहाना था ।
असली मकसद फ्लैट बेचकर खाना था।

आपसी प्रेम का खत्म होने को है पेटा ।
लड़ रहे हैं बाप और बेटा ।
करोड़पति सिंघानियां को लाले पड़
गये हैं खाने के ।
बेटे ने घर से निकाल दिया ,
चक्कर काट रहा है कोर्ट कचहरी थाने के।

परिवार को तोड़ने में अब तो
कानून ने भी बो दिए  हैं बीज ।
जायज है लिवइन रिलेशनशिप
और कॉन्ट्रैक्ट मैरिज ।

ना मुर्गी ना अंडा ना सास ससुर का फंडा ।
जब पति पत्नी ही नहीं तो परिवार कहाँ से  बसते ।
कॉन्ट्रैक्ट खत्म ,चल दिये
अपने अपने रस्ते ।
इस दौरान जो बच्चे हुए,
पलते हैं यतीमों की तरह ।
पीते हैं तिरस्कार का जहर ।

अर्थ की भागम भाग में
मीलों पीछे छूट गए हैं ,
रिश्ते नातेदार ।
टूट रहे हैं घर परिवार ।
सूख रहा है प्रेम और प्यार ।

परिवारों का इस पीढ़ी ने ऐसा सत्यानाश किया कि ,
आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी ----

*"वन्स अपॉन अ टाइम,देयर वाज लिवींग जोइंट फैमिली इन इंडिया, दैट इज कॉल्ड ................."परिवार"