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Wednesday 26 December 2018

आखिर अंतर रह ही गया

बचपन में जब हम रेल की सवारी  करते थे, माँ घर से खाना बनाकर ले जाती थी l पर रेल में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा ने समझाया ये हमारे  बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह  पैसे खर्च कर सकते हैं,  हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैंl "स्वास्थ  सचेतन के लिए"।
आखिर वो अंतर रह ही गया l🙄

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बचपन में जब हम सूती कपड़ा पहनते थे, तब वो लोग टेरीलीन पहनते थे l बड़ा  मन करता था पर  पापा कहते हम इतना खर्च  नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरीलीन पहने लगे तब वो लोग सूती  के कपड़े पहनने  लगे l सूती  कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च  नहीँ कर सकते l

आखिर अंतर रह ही गया 🙄🤔

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बचपन में जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनों के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो लोग घुटनों के पास फटे पतलून महंगे दामों  में बड़े दुकानों  से खरीदकर पहन रहे हैं l

आखिर अंतर रह ही गया🤔🙄

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बचपन में हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते,  तब वे स्कूटर पर जाते l जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे l
आखिर अंतर रह ही गया 🤔🙄

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और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर  BMW खरीदे अंतर को मिटाने के लिए तो वो साईकिलिंग करते नज़र आये स्वास्थ्य के लिए।

   
अंतर रह ही गया🤔🙄
हर हाल में हर समय दो लोगो में अंतर रह ही जाता है , अंतर सतत है सनातन है सदा सर्वदा रहेगा , कभी भी दो व्यक्ति और दो परिस्थितिया  एक जैसी नहीं होती।  इसलिए जिस हाल में हो जैसे हो प्रसन्न रहे , कही ऐसा न हो कल की सोचते सोचते आज को ही खो दे और फिर कल इस आज को याद करे।