शिक्षा विभाग बन
बच्चों के लिए ढाबा
दुध दिया है सरकार नें
गर्म किया है अध्यापकों नें
और पीया है बच्चों नें
तो बताओ मलाई कोन खायेगा
यही तो उलझन है अभी तक
जो सुलझेगी नहीं
हर व्यक्ति सवाल कर रहा है
काश ये होता की
सरकार वहीं से दुध भेजती
और अपने अलग से आदमी भेजती
जो पिलाकर चले जाते
और मलाई जो बचती
वह सरकार को जमा करवा देते
यही तो विडम्बना है सरकारी महकमों की
कोई भी योजना लानें से पहले
कुछ भी विचार नहीं करती
अध्यापक क्या करेंगे बेचारे
दो पीरियड तो दुध में पुरे हो जायेंगे
एक दुध लानें में व दुसरा दुध पिलानें में
फिर पढ़ाई कहां से करवायेंगें
फिर आगे से आवाज आएगी
हमें रिजल्ट अच्छा चाहिये
क्या यही है हमारी शिक्षा प्रणाली
खाना तो चलता ही था
और दुध भी चालु हो गया
फिर और कोई सरकार आएगी तो
नाश्ता व चाय भी चालु करवाएगी
क्यों ना बच्चों की सोने की व्यवस्था भी
वहीं करा दी जाये
और अध्यापकों के खाने क़ि भी वहीं
सरकार को कुछ करना ही था तो
सरकारी यूनिफॉर्म बनवाते
और बच्चों को पहनाते
या स्कूल में और सुविधाएँ करवाते
दुध से क्या होगा
बच्चों का कोनसा विकास होगा
अभी तो शुरुआत है
अभी तो छिपकलियां गिरना बाकी है
कोकरोज गिरना बाक़ी है
फिर बच्चों का बीमार होना बाक़ी है
फिर जाँच समिति गठित कर दी जायेगी
सब विद्यालयों में हड़कम्प मच जायेगा
पुरा महकमा एक हो जायेगा
फिर दुध वालों की खैर नहीं और
अध्यापकों की खैर नहीं
क्या यही है अपनी शिक्षा प्रणाली
क्यों स्कूलों को बर्बाद करते हो
क्यों पढ़नें का समय छीनते हो
क्यों स्कूलों को ढाबे बनाते हो
क्या यही थी बी एड
और एस टी सी , की डिग्रियां
जो सबको रसोइये बनाकर रख दी
जो थी ज्ञान की पाठशाला
उसे क्यों पकवान शाळा बनाकर रख दी
जब नहीं आएगा दुध तो
मलाई कहां से आएगी
और मलाई नहीं आएगी तो
मलाई खानें का मौका कहां से आएगा
और जब ना होगा बांस
तो बांसुरी फिर कहां से बजेगी ,,,,,
*दुध पिलाकर सभी बच्चों का !*
*ध्यान शिक्षा से क्यों हटाते हो !!*
*जो काम था सबके घर पर होना !*
*वो स्कूल में क्यों करवाते हो !!*
*जो समय था पढ़नें और पढानें का !*
*उसे खानें पीनें में ही क्यों गंवाते हो !!*
क्या यही है हमारे सबसे बड़े लोकतन्त्र की शिक्षा प्रणाली,