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Thursday 16 April 2020

*दो बिस्कुट और एक शिक्षक*


सुन गाँव के ऊंचे अधिकारी,
तूने काम किया विस्मयकारी।
शिक्षक ने दो बिस्कुट खाये,
तूने उसकी रपट लिखा डारी।।

उसका पेट नही था बड़ा,
दो बिस्कुट भी ना समाये।
पर सीमेंट,पत्थर बजरी,
बताओ आपने कैसे पचाये।।

ऐसी अदभुत पाचन शक्ति,
 कैसे तुमने पाई।
सड़के,चारदिवारी,नाली
कैसे तुमको भायी।।

सुना है लेवल-5 के हो,
खुद को अधिकारी कहते हो।
कार के अन्दर बैठे हो,
ए सी बंगलों में रहते हो।

दाढ़ी में एक तिनका है या,
तिनकों में एक दाढ़ी है।
दाल में थोड़ा काला है,
या दाल ही पूरी काली है।।

हमको तो ये सब पता नही,
ये पेपर वाले ही बताते हैं ।
अरबों पर जुबान नही खुलती,
दो बिस्कुट पर पेज भर जाते है।।

मजा बहुत आता है तुमको,
शिक्षक की खिल्ली उड़ाने में ।
दिल दुखता था उस शिक्षक का भी,
कभी मुर्गा तुम्हें बनाने में।।

कमी हमारी थी शायद,
जी भरके तुम्हें पढ़ाया था।
शायद तुम अनुपस्थित थे उस दिन,
जब शिष्टाचार सिखाया था।।

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