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Friday 15 November 2013

Bachpan ki yade

पक्की सड़कें, ऊंचे घर हैं चारो ओर मगर,

बचपन की वो क च्ची गलियां भूल नहीं सकता। 
मंहगी-मंहगी मोटर हैं, कारें हैं चारों ओर, पर वो घंटी वाली लाल साइकिल भूल नहीं सकता।

झूले वाले आ जाते हैं अक्सर यहां मगर, जाने क्यों वो पेड़ की डाली भूल नहीं सकता।

 
चाकलेट और टाफी के डिब्बे घर में रखे हैं फिर भी खट्टा मिट्ठा चूरन अपना भूल नहीं सकता।

मोबाइल ने बना दिया है सब कुछ बड़ा सरल, पर जाने क्यूं वो पोस्टकार्ड निराला भूल नहीं सकता।

सौ – सौ चैनल टीवी पर आते हैं रातो दिन, पर बुद्धवार का चित्रहार मै भूल नहीं सकता।

कम्प्यूटर पर गेम खेलना अच्छा लगता है, पर पोसम पा और इक्खल दुक्खन भूल नहीं सकता।

चाइना की पिचकारी ने मचा रखी है धूम बहुत, पर होली वाला कींचड़ फिर भी भूल नहीं सकता।

मोबाइल की घण्टी से खुल जाती है नींद मगर, चिड़ियों की वो चूं चूं चैं चैं भूल नहीं सकता।

बिग बाज़ार से लेकर आते मंहगे – मंहगे फल, पर बगिया की वो कच्ची अमिया भूल नहीं सकता।

सुपरमैन और हल्क की फिल्में अच्छी तो लगती हैं पर, चाचा चैधरी, बिल्लू, पिंकी भूल नहीं सकता।

बड़े ब्रैण्ड के जूते चप्पल चलते सालों साल मगर, सिली हुई वो टूटी चप्पल भूल नहीं सकता।

बनते हैं हर रोज़ यहां दोस्त नये अक्सर, पर बचपन की वो टोली अपनी भूल नहीं सकता।

बारिश में अब पापकार्न घर में ही मिलता है, पर भरभूजे की सोंधी लइया भूल नहीं सकता।

दोस्तों के संग वाटर पार्क जाता हूं मै अक्सर, पर गुड़िया के दिन की बड़ी नहरिया भूल नहीं सकता।

सोफे पर बैठे – बैठे जाने क्यूं लगता है मुझको, आंगन की वो टूटी खटिया भूल नहीं सकता।

पढ़ लिख कर मै आज सयाना क्यूं न बन जाऊं मगर, ट्यूशन वाले मास्टर जी को भूल नहीं सकता।

अब जेब में रहते पैसे हर दम, पर

मां - पापा की दी हुई अठन्नी भूल नहीं सकता।

कुछ भी हो जाये जीवन में पर इतना निष्चित है मित्रों, मरते दम तक अपना बचपन भूल नहीं सकता।

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