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Friday 4 September 2015

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ

रहता हूं किराये की काया में...

रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं...

मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी...

बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं...

जल जायेगी ये मेरी काया ऐक दिन...

फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं....

मुझे पता हे मे खुद के सहारे  श्मशान तक भी ना जा सकूंगा...

इसीलिए जमाने में दोस्त बनाता हूँ ...🙏

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