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Tuesday 1 November 2016

*भाई दूज की कथा*

सूर्य भगवान की पत्नी संज्ञा देवी की दो संतानें हुईं-पुत्र यमराज एवं पुत्री यमुना। एक बार संज्ञा देवी अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन न कर सकी तथा उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने चली गई। उसी छाया में ताप्ती नदी एवं शनि देव का जन्म हुआ। छाया का व्यवहार यम एवं यमुना से विमाता जैसा था।

इससे खिन्न होकर यम ने अपनी अलग यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई को यमपुरी में पापियों को दंडित करने का कार्य करते देख गोलोक चली आई। यम एवं यमुना काफी समय तक अलग-अलग रहे। यमुना ने कई बार अपने भाई यम को अपने घर आने का निमंत्रण दिया परन्तु यम यमुना के घर न आ सका। काफी समय बीत जाने पर यम ने अपनी बहन यमुना से मिलने का मन बनाया तथा अपने दूतों को आदेश दिया कि पता लगाएं कि यमुना कहां रह रही हैं।

गोलोक में विश्राम घाट पर यम की यमुना से भेंट हुई। यमुना अपने भाई यम को देखकर हर्ष से फूली न समाई। उसने हर्ष विभोर हो अपने भाई का आदर-सम्मान किया। उन्हें अनेकों प्रकार के व्यंजन खिलाए। यम ने यमुना द्वारा किए सत्कार से प्रभावित होकर यमुना को वर मांगने को कहा। उसने अपने भाई से कहा कि यदि वह वर देना चाहते हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि जो लोग आज के दिन यमुना नगरी में विश्राम घाट पर यमुना में स्नान तथा अपनी बहन के घर भोजन करें वे तुम्हारे लोक को न जाएं। यम ने यमुना के मुंह से ये शब्द सुन कर ‘तथास्तु’ कहा। तभी से भैया दूज का त्यौहार मनाया जाने लगा।

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