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Friday 8 December 2017

सहानुभूति की बातें कर लो

गिरा नीर नयन से झर-2
सुख हो या फिर दुःख से,
हृदय तल से उठा है भाव,
दृश्य दिखा जो पल से ॥1॥

दृश्य समन्वय की आशा थी,
किया अवलोकन समीप से,
कारण क्या था, अश्रु गिरे जब,
मानवता की चूक से ॥2॥

चूक हुई क्या हमसे तुमसे,
समझों ययावर विहंगों से,
विस्मृत होकर करें प्रवेश वे,
देश-विदेश में निज पंखो से॥3॥

निज पंखो से करें इशारा,
और देते हैं सन्देश नया,
क्षुद्र भाव को त्यागें हमसब,
जग हो जाए कितना प्यारा॥4॥

प्यारा तन है, प्यारा मन है,
कितनी प्यारी प्रकृति है,
स्वतंत्र हो अपनी अभिव्यक्ति,
यह तो कितनी सस्ती है ॥5॥

शिक्षा देतीं प्रकृति की कृतियाँ,
प्रेमभाव से सब रह लो,
और जाएगा क्या साथ तुम्हारे,
सहानुभूति की बातें कर लो ॥6॥

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