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Friday 17 July 2015

Shayri

क्या खुब लिखा है किसी ने ...
"बक्श देता है 'खुदा' उनको, ... !
जिनकी 'किस्मत' ख़राब होती है ... !!
वो हरगिज नहीं 'बक्शे' जाते है, ... !
जिनकी 'नियत' खराब होती है... !!" 

न मेरा 'एक' होगा,
न तेरा 'लाख' होगा, ... !
न 'तारिफ' तेरी होगी,
न 'मजाक' मेरा होगा ... !!
गुरुर न कर "शाह-ए-शरीर" का, ... !
मेरा भी 'खाक' होगा,
तेरा भी 'खाक' होगा ... !!  

जिन्दगी भर 'ब्रांडेड-ब्रांडेड' करने वालों ... !
याद रखना 'कफ़न' का कोई ब्रांड नहीं होता ... !! 

कोई रो कर 'दिल बहलाता' है ... !
और कोई हँस कर 'दर्द' छुपाता है ... !! 
क्या करामात है 'कुदरत' की, ... !
'ज़िंदा इंसान' पानी में डूब जाता है और 'मुर्दा' तैर के दिखाता है ... !! 

'मौत' को देखा तो नहीं,
पर शायद 'वो' बहुत "खूबसूरत" होगी, ... !
"कम्बख़त" जो भी 'उस' से मिलता है,
"जीना छोड़ देता है" ... !! 

'ग़ज़ब' की 'एकता' देखी "लोगों की ज़माने में" ... !
'ज़िन्दों' को "गिराने में" और 'मुर्दों' को "उठाने में" ... !!

'ज़िन्दगी' में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री" होगी, ... !
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी । 
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" "आख़री होगी" ... !! — 

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