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Friday 24 February 2017

ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती

कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया।
आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूँ,
कल 8 बजे ही चला आया।

सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा,
फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं।
बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे। 

घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी।
मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है,
मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं।
मैं मेल चेक करने लगा,
कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई,
तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा।

अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठकर बातें करूंगा,
फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा,
पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला।

पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया,
मैं चुपचाप खाना खाने लगा ।
खाना खाते हुए मैंने कहा कि
खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे।
पत्नी खुश हो गई।

हम खाना खाते रहे,
इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा
और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया।
सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था।

जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी।
बहुत अफसोस हुआ।
मन में सोच कर घर आया था
कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा।
पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई।

ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में।
हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है।
हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे,
पर हम कभी नहीं जीते।
हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे,
पर नहीं कर पाते।

आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी।
मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था। 

पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था।
पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी।
फिर मैने इससे शादी की थी।
मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।

पर ये कैसा साथ ? मैं सुबह जागता हूँ
अपने काम में व्यस्त हो जाता हूँ ।
वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है।
चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूँ,
वो नाश्ते की तैयारी करती है।
फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं,
मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं,
वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है।
फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं।

मैं एकबार दुकान चला गया,
तो इसी बात में अपनी शान समझता हूँ
कि मेरे बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता,
वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है।

देर रात मैं घर आता हूं
और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं।
एक पूरा दिन खर्च हो जाता है,
जीने की तैयारी में।

वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझसे कभी शिकायत नहीं करती।
क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता।
पर मुझे खुद से शिकायत है।
आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है,
सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों?
 

कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते।
हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं।
हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं।

कल से मैं सोच रहा हूं,
वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे।
क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्यूटर,कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं?

मैं तो सोच ही रहा हूं,आप भी सोचिए

कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है।
उसे यूं जाया मत कीजिए।
अपने प्यार को पहचानिए।
उसके साथ समय बिताइए।
जो अपने माँ बाप भाई बहन सगे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़ आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया  उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही।

एक दिन अफसोस करने से बेहतर है,
सच को आज ही समझ लेना
कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है।
कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी,
पता भी नहीं चलेगा

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