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Friday 5 August 2016

राजस्थान में 1857 की क्रांति

विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 की क्रान्ति को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की संज्ञा दी थी।
भारत मे इस क्रान्ति की शुरूआत 10 मई, 1857 को मेरठ से हुई थी।

राजस्थान में यह क्रान्ति नसीराबाद से शुरू हुई
थी। राजस्थान में इस क्रान्ति के समय छः ब्रिटिष
छावनियां थी।

नसीराबाद (अजमेर),
नीमच (राजस्थान एवं मध्यप्रदेष का सीमावर्ती क्षेत्र)
एरिनपुरा (पाली, जोधपुर)
देवली (टोंक)
खेरवाड़ा (उदयपुर)
ब्यावर (अजमेर)

1857 की क्रान्ति के समय भारत के गवर्नर जनरल लाॅर्ड केनिंग थे।

क्रान्ति के प्रमुख कारण:-
देषी रियासतों के राजा मराठा व पिण्डारियों से छुटकारा पाना चाहते थे।
लार्ड डलहौजी की राज्य विलय की नितिया।
चर्बी लगे कारतुस का प्रयोग (एनफील्ड)

नसीराबाद:-

यहां क्रान्ति 28 मई, 1857 को शुरू हुई। क्रान्ति की शुरूआत बंगाल इनफैन्ट्री बटालियन ने
की बाद में 30 वीं बंगाल इनफैन्ट्री ने भी इसका साथ दिया।

नीमच (मध्यप्रदेष):-

यहां पर क्रान्ति 3 जून, 1857 को हुई थी।

एरिनपुरा:-

21 अगस्त, 1857 को हुआ। इसी समय क्रान्तिकारियों ने एक नारा दिया ‘‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’’। इस समय जोधपुर के शासक तख्तसिंह थे। क्रन्तिारियों ने आऊवा के ठाकुर कुषालसिंह से मिलकर तख्तसिंह की सेना का विरोध किया।
तख्तसिंह की सेना का नेतृत्व अनाड़सिंह व कैप्टन हिथकोट ने किया था। जबकि क्रान्तिकारियों का नेतृत्व ठाकुर कुषालसिंह चंपावत ने किया था।
दोनो सेनाओं के मध्य 13 सितम्बर, 1857
को युद्ध हुआ। यह युद्ध बिथोड़ा (पाली) में हुआ। जिसमें कुषालसिंह विजयी रहें एवं हीथकोट की हार हुई। इस हार का बदला लेने के लिए पेट्रिक लोरेन्स एरिनपुरा आए एवं क्रान्तिकारियो ने इन्हे भी परास्त किया। लोरेन्स के साथ जोधपुर के मैकमोसन थे।
क्रान्तिकारीयों ने मैकमोसन की हत्या कर इसका सिर आउवा के किले पर लटकाया।
इस हार का बदला लेने के लिए लार्ड कैनिन ने
रार्बट हाम्स आउवा सेना भेजी। इस क्रान्ति का दमन किया गया। यह क्रान्ति आउवा क्रान्ति या जनक्रान्ति के नाम से जानी जाती हैं।

कोटा:-

15 अक्टूबर,1857 को कोटा में विद्रोह हुआ।
कोटा के मेजर बर्टन इनके समय में क्रान्तिकारियों की कमान जयदयाल (वकील) मेहराबखां (रिसालदार) के हाथ में थी।
इन दोनो के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने मेजर
बर्टन,उसके दो पुत्र व डाॅ. मिस्टर काटम की हत्या कर दी। मिस्टर राॅर्बटस ने इस क्रान्ति का दमन 1858 में किया। छः माह तक कोटा क्रान्तिकारियों के अधीन रहा।

धौलपुर:-

धौलपुर में क्रान्ति का नेतृत्व रामचन्द्र व हीरालाल ने किया, उस समय धौलपुर का शासक भगवन्तसिंह था जो क्रान्तिकारियों का विरोधी था।

भरतपुर:-

भरतपुर में क्रान्ति का दमन माॅरीसन ने किया।

1857 की क्रान्ति के समय तांत्या टोपे की भूमिका:-

तांत्या टोपे 2 बार राजस्थान आयें। 8 अगस्त,
1857 को वह भीलवाड़ा आये, इस समय इन्होने रार्बट्स को हराया और टोपे ने झालावाड़ के शासक पृथ्वीसिंह को भी हराया।

11 दिसम्बर, 1857 को दूसरी बार राजस्थान आये। इस समय उन्होने बांसवाड़ा को जीता।
मेजर ईंड़न को सूचना का पता चला तो वह
तांत्या टोपे का पीछा करते हुए बांसवाड़ा पहुंचा।
बांसवाड़ा से उदयपुर अन्त में तांत्या टोपे के
विष्वासघाती मित्र मानसिंह नरूका ने धोखा किया व ईंड़न को टोपे का पता बता दिया एवं
इन्हें फांसी की सजा दी गईं।

1857 की क्रान्ति की असफलता के कारण:-

राजस्थान के राजाओें ने क्रान्तिकारियों का साथ न देकर ब्रिटिष सरकार का साथ दिया।
क्रान्ति नेतृत्वहीन थी। 
क्रान्तिकारियों में एकता व सम्पर्क का अभाव था।

1857 की क्रान्ति के प्रभाव:-

राजस्थान की रियासतें पूर्णतः ब्रिटिष सरकार के हाथों में चली गई।
राजस्थान की जनता पर देषी रियासतों और
अंग्रेजों की गुलामी का दोहरा अंकुष लगा।
समाज में राष्ट्रीय और राजनैतिक चेतना का उदय हुआ।
यातायात के साधनों का विकास हुआ।

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